YouTube approves disinformation ads in India ahead of general election

लोकसभा चुनाव से पहले भारत में भ्रमित करने वाले विज्ञापनों को मंजूरी दे रहा यूट्यूब

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एक्सेस नाउ और ग्लोबल विटनेस की एक नई संयुक्त जांच में पाया गया है कि यूट्यूब देश के लोकसभा चुनाव से पहले भारत में चुनावी रूप से भ्रमित करने वाले विज्ञापनों को मंजूरी दे रहा है।

 “Votes will not be counted”: Indian election disinformation ads and YouTube, जांच ने पाया कि यूट्यूब ऐसे विज्ञापनों को मंजूरी दे रहा है जो चुनावी धोखाधड़ी के निराधार आरोप लगाते हैं, मतदान प्रक्रियाओं के बारे में झूठ फैलाते हैं, और चुनावी प्रक्रिया की अखंडता पर हमला करते हैं। जांच के रूप में यूट्यूब को प्रस्तुत किए गए विज्ञापनों को प्रकाशन से पहले ही शोधकर्ताओं द्वारा हटा दिया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे यूट्यूब पर न छपें।

तीन आधिकारिक भाषाओं (अंग्रेजी, हिन्दी, और तेलुगु) में यूट्यूब को जमा किये गए 48 विज्ञापनों में ऐसी सामग्री थी जो कि यूट्यूब कि चुनाव संबंधित नीतियों द्वारा स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित हैं। विज्ञापन को प्रकाशित करने से पहले उसकी समीक्षा करने की यूट्यूब की नीति के बावजूद, प्लेटफ़ॉर्म ने हर एक विज्ञापन को प्रकाशन के लिए मंजूरी दे दी।

भ्रामक विज्ञापनों से जुड़ी अपनी नीतियों को लागू करने में विफल होने से यूट्यूब पर गंभीर सवाल उठते हैं की क्या वह आने वाले भारतीय चुनाव की सस्वतंत्रता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने में अपनी भूमिका निभा रहा है या नहीं।2024 के महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष की ओर बढ़ते हुए, टेक-प्लेटफार्मों ने चुनावी अखंडता की रक्षा के बारे में लंबे वादे किए, लेकिन वे उसपे खरे नहीं उतर पाए इसका सबूत सामने हैं – यूट्यूब ने अपनी नीतियों का उल्लंघन करने वाले सभी 48 विज्ञापनों को स्वीकृति दे दी, जो हमारी जांच के हिस्से के रूप में उसे प्रस्तुत की गयीं। Namrata Maheshwari, Senior Policy Counsel, Access Now

भारत में 4,620 लाख लोग यूट्यूब का उपयोग करते हैं, जो दुनिया के किसी भी अन्य देश से अधिक है। यूट्यूब पर यह सुनिश्चित करने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि उसके प्लेटफार्म का उपयोग मतदाताओं को दबाने और उनके मताधिकार से वंचित करने के लिए न किया जाए।

2024 में, विश्व स्तर पर पहले से कहीं अधिक लोग चुनावों में भाग लेंगे। इस संदर्भ में, गलत सूचना से लड़ने में यूट्यूब सहित सोशल मीडिया प्लाटफॉर्म्स की भूमिका महत्वपूर्ण है। 2022 के अमेरिकी मिड्टर्म चुनावों से पहले ग्लोबल विटनेस द्वारा की गई इसी तरह की जांच में यूट्यूब ने साबित किया है कि वह जब चाहे प्रतिबंधित सामग्री का पता लगा सकता है और उसे अस्वीकार कर सकता है। फिर भी 2022 में ब्राज़ील में और अब भारत में की गई एक अन्य जांच के अनुसार, यूट्यूब अपने स्वयं के मानकों को बनाए रखने में विफल रहा है, और ऐसे चुनाव-संबंधित विज्ञापनों को स्वीकृति दे रहा है जो उसकी स्वयं कि नीतियों का उल्लंघन करते हैं।

जहां तक अपनी विज्ञापन और सामग्री से संबंधित नीतियों को असंगत और अपर्याप्त रूप से लागू करने की बात आती है, यूट्यूब बार-बार गलती दोहराने वाला अपराधी बन गया है।यूट्यूब के पास न उपयुक्त नीतियों की और न ही उन्हें लागू करने की क्षमता की कमी है। अगर कहीं कमी है तो ग्लोबल मेजोरिटी के लोगों को वही सुरक्षा प्रदान करने की इच्छा में, जो यूट्यूब अमेरिका के लोगों को प्रदान करता है। ये परिणाम विशेष रूप से परेशान करने वाले हैं क्योंकि यह वर्ष एक वैश्विक चुनावी महाचक्र है, जिसमें कई उच्च जोखिम वाली दौड़ें होंगी जिनके व्यापक परिणाम होंगे। Henry Peck, Campaigner, Digital Threats at Global Witness

जांच के जवाब में, गूगल ने कहा कि उनकी प्रवर्तन प्रक्रिया में यह सुनिश्चित करने के लिए कई परतें हैं कि विज्ञापन उनकी नीतियों का अनुपालन करें, और प्रारंभिक जांच पास करने वाले विज्ञापनों को भी गूगल की नीतियों का उल्लंघन करने पर उनके प्रवर्तन सिस्टम द्वारा ब्लॉक करा जा सकता है या हटाया जा सकता है।

नीति उल्लंघनों के लिए सामग्री की पहले से पर्याप्त समीक्षा करने के बजाय, जैसा कि होना चाहिए, यूट्यूब सुझाव दे रहा है कि उल्लंघन करने वाली सामग्री को बाद में हटाया जा सकता है। चुनावी अवधि में यह खतरनाक और गैर-जिम्मेदाराना है, जहां कोई विज्ञापन प्रस्तुत करने के कुछ घंटों के भीतर प्रकाशित किया जा सकता है। विशेष रूप से यूट्यूब की व्यापक पहुंच को ध्यान में रखते हुए, किसी झूठे या भ्रमित करने वाले विज्ञापन के लाइव होते ही उसके द्वारा समाज को हानि पंहुचना शुरू हो जाता है।

भारत में चुनाव शुरू होने से पहले यूट्यूब को अपने परिचालन में सुधार करना होगा। यूट्यूब को अपने प्रति विश्वास को पुनर्स्थापित करने और मानवाधिकारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को लागू करने के लिए, एक्सेस नाउ और ग्लोबल विटनेस यूट्यूब से तत्काल कदम उठाने की अपेक्षा रखते हैं, जिसमें शामिल हैं:

  • एक्सेस नाउ द्वारा प्रकाशित मौजूदा मार्गदर्शन के अनुसार सामग्री प्रशासन प्रणालियों को नियोजित करना;
  • विज्ञापन ईवैल्यूऐशन प्रक्रिया और चुनाव/राजनीतिक विज्ञापन नीति का गहन मूल्यांकन करना;
  • भारत में सभी भाषाओं में चुनाव-संबंधी सामग्री के मॉडरेशन के लिए अधिक संसाधनों का निवेश करना; और
  • नीतियों में फीडबैक को सार्थक रूप से शामिल करने के लिए नागरिक समाज, पत्रकारों, तथ्य-जांचकर्ताओं और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श करें।

विज्ञापन सामग्री की संवेदनशीलता को देखते हुए, हमने इस रिपोर्ट में पूर्ण विज्ञापन पाठ प्रदान नहीं किया है। यदि आप विज्ञापनों की सटीक शब्दावली देखना चाहते हैं, तो कृपया हमें ईमेल करें।